दिल्ली व्यूरो
कोलंबो : कहते हैं, अगर जनता सत्ता से सवाल पूछना बंद कर देती है, तो उस सत्ता को निरंकुश होने में वक्त नहीं लगता है और श्रीलंका में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। श्रीलंका की जनता ने राजपक्षे परिवार पर आंख मुंदकर विश्वास किया है और राजपक्षे परिवार ने देश को कंगाल कर दिया, लेकिन जब जनता ने सरकार से जवाब मांगना शुरू किया, तो अब देश के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे संविधान संशोधन कर विरोध करने का अधिकार भी छीनने की कोशिश करने वाले हैं।
श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने देश में एक बार फिर से अपनी नई कैबिनेट का चुनाव कर लिया है। इसी महीने की शुरूआत में आर्थिक बदहाली से जूझ रहे श्रीलंका में जब विरोध प्रदर्शन शुरू हुए, तो देश की सरकार के सभी कैनिबेन सदस्यों ने अपने अपने पद थोड़ दिए थे, लेकिन राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जमे हुए हैं। वहीं, आज राष्ट्रपति गोतबया राजपक्षे ने 17 नए कैबिनेट मंत्रियों को शपथ दिलाई है। हालांकि, इस बार जिस कैबिनेट का गठन किया गया है, उसमें राजपक्षे परिवार का कोई सदस्य नहीं है, जबकि, पिछली परिवार में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री मिलाकर राजपक्षे परिवार के सात सदस्य सरकार में शामिल थे।
श्रीलंका की आर्थिक स्थिति काफी ज्यादा बदहाल हो चुकी है और पूरे देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं, जिसकी वजह से एक अप्रैल को पूरे श्रीलंका में आपातकाल का ऐलान कर दिया गया था। हालांकि, बाद में सरकार ने आपातकाल को हटा लिया। वहीं, 3 अप्रैल को पूरे श्रीलंकाई कैबिनेट ने बड़े पैमाने पर विरोध के मद्देनजर इस्तीफा दे दिया था। हालांकि, प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया और वो अपने पद पर अभी भी बने हुए हैं। 1948 में देश को आजादी मिलने के बाद से श्रीलंका सबसे खराब माने जाने वाले आर्थिक संकट की चपेट में है। ऊर्जा की कमी के कारण, श्रीलंका के कुछ हिस्सों में ब्लैकआउट चल रहा है। श्रीलंका का विदेशी कर्ज 51 अरब डॉलर होने का अनुमान है।
रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे संविधान में संशोधन के लिए कैबिनेट के सामने अपना प्रस्ताव रखेंगे। माना जा रहा है, कि इस प्रस्ताव के जरिए प्रधानमंत्री अपने खिलाफ उठने वाली आवाजों को कुचलना चाहते हैं। लेकिन, प्रधानमंत्री का कहना है, कि उन्होंने ये फैसला लोगों के प्रति सरकार की जवाबदेह तय करने बात को ध्यान में रखकर यह कदम उठाया है। सिन्हुआ ने प्रधानमंत्री की मीडिया इकाई के हवाले से बताया कि, प्रस्तावित संवैधानिक संशोधन में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका में बदलाव किया जाएगा। श्रीलंका में इस वक्त जो प्रदर्शन किए जा रहे हैं, उसमें एक डिमांड यह भी है, कि संविधानिक संशोधन के जरिए कार्यपालिका की शक्ति को कम किया जाए।
वहीं, श्रीलंका में आर्थिक स्थिति के जल्द सुधरने के कोई संकेत भी नहीं दिखाई दे रहे हैं, लिहाजा अब सरकार के खिलाफ गुस्सा काफी ज्यादा बढ़ गया है और डर इस बात को लेकर है, कि कहीं देश में गृहयुद्ध ना शुरू हो जाए। प्रदर्शनकारियों और देश के राष्ट्रपति के बीच आरपार की लड़ाई शुरू हो गई है और राष्ट्रपति गोतबया राजपक्षे ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया है, जबकि प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति से तत्काल इस्तीफे की मांग की है।
वहीं, श्रीलंकाई नागरिकों ने राष्ट्रपति भवन के बाहर विरोध प्रदर्शन किया, जिसके बाद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने सभी प्रदर्शनकारियों को चरमपंथी घोषित कर दिया है और सैकड़ों प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया है, जिनमें एक विश्वविद्यालय के प्रमुख भी हैं। छात्र, किसान और न्यायपालिका के सदस्य सभी राजपक्षे और उनके परिवार के विरोध में शामिल हुए और “अब और राजपक्षे नहीं” के नारे लगाए। सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ गुस्से की बाढ़ को देखकर सरकार ने इंटरनेट को ही बंद कर दिया है, जिससे प्रदर्शनकारियों में गुस्सा और भी ज्यादा बढ़ गया है।
वहीं, श्रीलंकन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, लोगों के विरोध प्रदर्शन की डर से राजपक्षे परिवार के कई सदस्य और फाइनेंसर श्रीलंका छोड़कर फरार हो चुके हैं। वहीं, प्रदर्शनकारियों का कहना है कि, राष्ट्रपति इस्तीफा दें और तत्काल देश में चुनाव करवाएं जाएं और अगर ऐसा नहीं किया गया, तो देश में अराजकता की स्थिति आएगी। वहीं, देश में विरोध प्रदर्शन को देखते हुए ज्यादातर सांसद सरकार में शामिल नहीं होना चाह रहे हैं, जबकि प्रधानमंत्री संविधान में संशोधन कर लोगों से प्रदर्शन करने का अधिकार ही छीनने की कोशिश करने वाले हैं और अगर प्रधानमंत्री ऐसा करते हैं, तो फिर श्रीलंका में प्रदर्शनकारियों का गुस्सा और बढ़ना तय माना जा रहा है।